Friday, January 8, 2010

शोक

वक्त चलता है 
अपनी रफ़्तार से
वह न कभी हांफता है
न कभी सुस्ताता.

पर दुनिया दौड़ती है
उसी के पीछे
सोचती है की हरा देगी
वक्त की गति को भी

और फिर हार जाती है
खुद दुनिया
और मनाने लग जाती है 
शोक
किसी और के निकल जाने का
खुद से भी आगे

मैं भी दौड़ा कुछ घडियों तक
फिर थका, हारा और बैठ गया
सुस्ताकर किसी रूखे वृक्ष के नीचे
कुछ आंसू भी बहाए
पर वो भी रुसवा हो गए
कुछ लम्हों के बाद

फिर भी मैं चला
चंद कदम और
पर शाम की दस्तक 
और बुझती रौशनी में
मेरा साया भी 
छोड़ गया साथ 

वक्त चलता रहा अपनी गति से
अकेला
मैं कभी दौड़ा कभी चला
कभी हमसफ़र मिले कभी बिछड़े 
कुछ हँसे, कुछ रोये और सिसके

जब इस दौड़ में सिर्फ
खोना, पाना और फिर खोना ही है
तो फिर क्यूँ मनाया जाये
बरबादियों का
शोक!!!

कृति: देवेन्द्र शर्मा (कंपनी सचिव)
deven238cs@gmail.com
दिनांक: 07.01.2010


Thursday, January 7, 2010

तू किसी और की जागीर है मेरी जान-ए-ग़ज़ल
लोग तूफां उठा लेंगे मेरे साथ न चल!!!!!!!

Tuesday, January 5, 2010

कैसे कैसे सपने पलकों में संजो लेते है लोग
एक हम हैं कि आंख में तिनका लिए फिरते है!!!

Monday, January 4, 2010

नवल वर्ष मनाये

नवल वर्ष मनाये

आई भोर की प्रथम किरण
पंछियों ने गुनगुनाया, नव वर्ष आया नव वर्ष आया
हम नई सुबह की नई किरण को चहूँ और फैलाए,
आओ नवल वर्ष मनाये.

सुखद लम्हों को याद करें
सबके लिए फ़रियाद करें
एक दूजे की खामियों को भुलाएँ,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

अपनों को साथ जोड़ें
गैरों से भी मुंह न मोड़ें
हर तरफ भाईचारा फैलाएं,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

बीती असफलताओं को भूलें
नए स्वप्न देखें नई कल्पना करें
नवल उत्थान में नई रहें सजाएं,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

रुकें न हम झुके न हम
नया सोचें कुछ सृजन करें हम
ज्ञान बढ़ाएं अज्ञान मिटायें,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

सबकी भावनाओं का सम्मान करें
पराजितों से भी मुंह न मोड़े
कहीं बहे आंसू तो रुमाल बन जाएँ,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

अच्छा देद्खें, सच्चा सोचें, मीठा बोलें
आँखों की आभा में प्रेम रस को तोलें
नई सुबह में मृदु वाणी से प्रेम सरिता बहायें,
आओ नवल वर्ष मनाएं!!!

कृति- देवेन्द्र शर्मा (कंपनी सचिव)
01.01.2010